ममता ने किया युद्ध का ऐलान, नंदीग्राम रणभूमि में तब्दील

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नंदीग्राम क्षेत्र से ममता बनर्जी के चुनाव लड़ने के ऐलान पर बीजेपी में बौखलाहट क्यों?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐलान किया कि आने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव में वो मिदनापुर जिले के पूर्वी नंदीग्राम से चुनावी मैदान में उतरेंगी। ममता के इस ऐलान के बाद बंगाल पॉलिटिक्स में तूफान आ गया। माना जा रहा है कि ममता का ये कदम सुनियोजित है और बंगाल विधानसभा चुनाव में मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।

आखिर नंदीग्राम इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

दरअसल, साल 2011 के पहले टीएमसी ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कई आंदोलन किए थे। जिसका दो मुख्य केंद्र था नंदीग्राम और सिंगुर इलाका। इन आंदोलनों की वजह से 34 साल से पश्चिम बंगाल में चल रहे लेफ्ट सरकार को टीएमसी ने उखाड़ फेंका था। टीएमसी को 2011 बंगाल विधानसभा चुनाव में पहली बार जीत मिली थी।

साल 2007 में नंदीग्राम के 14 गांववालो की पुलिस फायरिंग में मौत हो गयी थी। ये सभी गांववाले लेफ्ट सरकार के प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे क्योंकि लेफ्ट सरकार इंडोनेशिया के सलीम ग्रुप के लिए नंदीग्राम में केमिकल हब बनाना चाहती थी।

नंदीग्राम हिंसा ने टीएमसी को माँ, माटी और मनुष्य का स्लोगन दिया। जिसका इस्तेमाल पार्टी ने चुनाव प्रचार में खूब किया। इस जगह (नंदीग्राम) ने ममता बनर्जी को किसान समर्थक राजनीतिक शख्सियत में बदल दिया था।

साल 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी की जीत हुई थी। लेकिन इस चुनाव में अबतक 7 बार सांसद बन चुकी ममता बनर्जी ने चुनाव नहीं लड़ा था। हालांकि, मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ी और 50 हज़ार मतों के अंतर से विजयी हुई। साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भी बनर्जी ने इसी सीट पर 25000 मतों के अंतर से जीत दर्ज किया था।

हालांकि इसके कई और कारण भी है। सबसे पहली बात तो यह है कि ममता बनर्जी का वापस से एक किसान समर्थक शख्सियत के रूप में दिखना जिसने ममता को 2011 असेम्बली चुनाव में जीत दिलाया क्योंकि नंदीग्राम ने उन्हें वो दिया जो आज वो असल में हैं। इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से ममता के मज़बूत संबंध हैं।

जब केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे थे। तब ममता ने अपनी छवि एक रक्षक के रूप में दोबारा बनाने की कोशिश की जो किसानों के अधिकार की रक्षा करता हो। चाहे भले ही इन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए ममता को कई अधिक मील चलना ही क्यों न पड़े। वहीं नंदीग्राम क्षेत्र ने उन्हें एक सही प्लेटफार्म दिया जहां से ममता कृषि संकट को दूर करने के अपने संकल्प को पूरा कर सकती हैं।

दूसरी बात यह कि पिछले महीने ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी के साथ सीधे मुकाबले में थी। जिसके नतीजन टीएमसी के वरिष्ठ और नंदीग्राम विधायक सुवेन्दु अधिकारी को हार मिली और उनकी पार्टी को करारा झटका लगा।

शायद इसी वजह से सुवेन्दु अधिकारी से सीधे वार्ता करने के बजाय ममता ने उसे उसके ही गढ़ में चुनौती दे दिया। जिससे पूर्वी मिदनापुर में टीएमसी की पहुंच बिना अधिकारी परिवार के सपोर्ट से भी बनी रहे। मालूम हो कि सुवेन्दु के पिता सिसिर अधिकारी और भाई दिब्येंदु अधिकारी दोनों ही टीएमसी सांसद रहे हैं और दोनों का ही पूर्वी मिदनापुर और आसपास के जिले के लोगों पर अच्छा प्रभाव है।

अब बीजेपी के लिए नंदीग्राम क्षेत्र में ममता बनर्जी को हराना चुनतीपूर्ण है क्योंकि साल 1989 लोकसभा चुनाव से बंगाल में अबतक ममता ने हार का मुँह नहीं देखा है।

तीसरी बात यह है कि ममता ने अपने ऐलानों से अपनी छवि एक फाइटर के रूप में स्थापित कर लिया है। बंगाल में भाजपा के दबाव होने के बावजूद भी उन्होंने बीजेपी को उनकी पूरी चुनावी रणनीति को दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया है। इतना ही नहीं ममता ने अपनी पार्टी को दोबारा जीत दिलाने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओ और फेंस सिटर को मैसेज दिया है वे अपने पोजीशन पर पुर्नविचार करें। पार्टी के लिए ये एक प्रमुख प्रोत्साहन होगा जो लगातार तीसरी बार राज्य में अपनी सरकार बनाने का सोच रही है।

वहीं दूसरी तरफ, ये भी माना जा रहा है कि ममता अपनी जीत के लिए एक और सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। लेकिन ये सीट भवानीपुर नहीं होगा क्योंकि इस सीट पर उन्हें बीजेपी से मुश्किल मुकाबला मिला था। साल 2019 लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने केवल 3000 मतों के अंतर से इस सीट से जीत दर्ज की थी जो पार्टी के लिए चिंता का विषय रहा।

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, टीएमसी जिसके सामने केंद्र की बीजेपी पार्टी एक आउटसाइडर के रूप में रही फिर भी भबनिपुर निर्वाचन क्षेत्र में गैर बंगालियों के साथ अच्छा नहीं कर पाई। अगर साल 2019 लोकसभा चुनाव को दोबारा भवानीपुर में दोहराए जाता है तो पार्टी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में परेशानी का कारण बन सकता है।

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